षटतिला एकादशी माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली अत्यंत पवित्र और दान-धर्म से जुड़ी हुई एकादशी है। ‘षट’ का अर्थ है ‘छह’ और ‘तिला’ का अर्थ है ‘तिल’। इस दिन तिल से जुड़े छः प्रकार के दान—तिल स्नान, तिलदान, तिल होम, तिल मिश्रित भोजन, तिल का उबटन और तिल से पूजा—विशेष रूप से किए जाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि जो भक्त इस व्रत का पालन श्रद्धा से करता है, उसके जीवन से दरिद्रता, दुख और नकारात्मकता दूर होती है तथा घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है। इस दिन किया गया तिलदान पुराणों में सौ यज्ञों के समान फलदायी माना गया है। षटतिला एकादशी का व्रत मनुष्य को धर्म, पवित्रता, दान, संयम और आत्मिक विकास की ओर अग्रसर करता है। यही कारण है कि इसे “अन्न-वृद्धि और धन-संपन्नता देने वाली एकादशी” कहा गया है।
| विवरण | समय / तिथि |
|---|---|
| एकादशी तिथि प्रारंभ | 15 जनवरी 2026, रात 11:57 बजे |
| एकादशी तिथि समाप्त | 17 जनवरी 2026, सुबह 01:02 बजे |
| पारण का समय | 17 जनवरी 2026, सुबह 07:14 बजे से 09:29 बजे तक |
| द्वादशी तिथि समाप्त | 17 जनवरी 2026, दोपहर 12:47 बजे |
प्राचीन समय में एक अत्यंत धार्मिक और उपवास करने वाली ब्राह्मणी रहती थी, जो भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी। वह नियमित रूप से व्रत करती थी, परंतु Shattila Ekadashi Vrat में बताए गए सबसे महत्वपूर्ण नियम – दान – का पालन नहीं करती थी। उसके जीवन में पूजा तो थी, लेकिन अन्नदान का पूर्ण अभाव था। यही कारण था कि उसके घर में हमेशा सूखापन और दरिद्रता का वातावरण था, जबकि वह निरंतर व्रत और उपवास करती रहती थी।
एक दिन नारद मुनि उसके घर आए और देखा कि ब्राह्मणी तो तपस्विनी है, लेकिन उसके जीवन में सुख-संपन्नता नहीं है। यह देखकर नारद जी उसे वैकुण्ठ धाम ले गए ताकि वह Shattila Ekadashi के पीछे छुपे महान महत्व को समझ सके। वहाँ ब्राह्मणी ने देखा कि उसके पुण्य से एक विशाल दिव्य महल बना था, लेकिन वह अंदर से बिल्कुल खाली, अंधकारमय और नीरस था, न वहाँ अन्न था, न प्रकाश, न कोई समृद्धि।
व्याकुल होकर उसने भगवान विष्णु से पूछा कि ऐसा क्यों है। तब भगवान ने कहा, “हे ब्राह्मणी! तुमने अनेक व्रत किए, लेकिन अन्नदान कभी नहीं किया। इसलिए तुम्हारा पुण्य अधूरा रहा। व्रत का फल तब पूर्ण होता है जब उसमें सेवा और दान भी शामिल हो। इसी कारण तुम्हारा दिव्य भवन खाली है।”
यह सुनकर ब्राह्मणी ने पश्चाताप करते हुए भगवान से उपाय पूछा। तब श्रीहरि ने कहा कि Shattila Ekadashi Vrat (षटतिला एकादशी व्रत) का पालन करो। माघ मास की कृष्ण पक्ष एकादशी को तिल के छह प्रकार के उपयोग—तिल स्नान, तिल उबटन, तिल भोजन, तिल हवन, तिल युक्त जल और तिलदान—से व्रत करना चाहिए। यही Shattila Ekadashi Katha का सार और उद्देश्य है।
भगवान विष्णु ने आगे कहा कि इस व्रत को करने से दरिद्रता का नाश होता है और घर में अन्न-वृद्धि व समृद्धि का शुभ आगमन होता है। यह सुनकर ब्राह्मणी ने श्रद्धा से Shattila Ekadashi के नियमों के अनुसार व्रत किया। उसने तिल से स्नान किया, तिल का दान किया, तिल का हवन किया और जरूरतमंदों को अन्न व तिल प्रदान किए।
व्रत के प्रभाव से उसका जीवन बदल गया। उसका दिव्य महल प्रकाश, भोजन और समृद्धि से भर गया और उसके सभी अधूरे पुण्य फलित हो गए। उसी दिन से Shattila Ekadashi को ऐसा व्रत माना गया है जो तप, दान और भक्ति—तीनों को पूर्ण करता है।
इस कथा से भगवान विष्णु ने यह संदेश दिया कि:
“व्रत, उपवास और पूजा तब तक पूर्ण नहीं होते जब तक उनमें दान और सेवा शामिल न हों।”
इसीलिए Shattila Ekadashi व्रत को अन्न-वृद्धि, धन-वृद्धि, शुभता और आध्यात्मिक पवित्रता देने वाली श्रेष्ठ एकादशी कहा जाता है।
इस दिन प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। तिल मिश्रित जल से स्नान करना अत्यंत पुण्य माना जाता है। इसके बाद घर या मंदिर में भगवान विष्णु और तुलसी माता का पूजन किया जाता है। पूजन में तिल, गंगाजल, तुलसी दल, पीला वस्त्र, दीप, धूप, अक्षत और पंचामृत शामिल होना चाहिए।
भक्त को दिनभर व्रत का पालन करते हुए ईश्वर का स्मरण और मंत्रजाप करना चाहिए। विष्णु सहस्रनाम, गीता पाठ या नारायण कवच का पाठ अत्यंत फलदायी माना गया है। शाम के समय तिल का दीपक जलाएँ तथा तिल से हवन करें।
पूजा के बाद दुर्बल, वृद्ध, साधु या जरूरतमंदों को तिल, गुड़, अन्न या भोजन का दान करें। यह दान इस एकादशी का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। अगले दिन पारण के समय भगवान विष्णु की पूजा करके व्रत खोलें और सात्त्विक भोजन ग्रहण करें।
इस व्रत में ब्रह्मचर्य का पालन, सात्त्विकता, सत्य, संयम और दया का पालन आवश्यक है। भक्त को तिल का अधिकतम उपयोग करना चाहिए—स्नान से लेकर भोजन, हवन और दान तक। व्रत के दौरान अनाज, विशेषकर चावल, का सेवन वर्जित है। क्रोध, झूठ, अपशब्द और किसी भी प्रकार के अनादर से बचना चाहिए। जरूरतमंदों को भोजन, तिल, कपड़े या अन्न का दान अत्यंत शुभ माना गया है। रात्रि में अत्यधिक जागरण या तामसिक कार्यों से दूरी रखें। यह व्रत मनुष्य को धर्म, तप और दान की शक्ति प्रदान करता है और जीवन के सभी दोषों का शमन करता है।
| क्या करें | क्या न करें |
|---|---|
| तिल से स्नान करें, तिल का दान करें | तामसिक भोजन, लहसुन-प्याज का सेवन |
| भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा | क्रोध, विवाद, नकारात्मक व्यवहार |
| दिनभर व्रत व भक्ति में समय बिताएँ | किसी भूखे को खाली हाथ न लौटाएँ |
| तिल का दीपक जलाएँ और हवन करें | अनाज विशेषकर चावल का सेवन |
| सत्संग, दान और सेवा करें | झूठ, अपशब्द, आलस्य, देर रात तक जगना |
Shattila Ekadashi 2026 का व्रत खोलने के लिए पारण समय का पालन अत्यंत आवश्यक है। पारण के दिन स्नान, विष्णु पूजा और सात्त्विक भोजन के साथ व्रत खोला जाता है। सही समय पर पारण करने से Shattila Ekadashi Vrat का पूरा फल मिलता है और जीवन में शुभता बढ़ती है।