मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले में स्थित एकलेरा माता मंदिर (मां बिजासन) न केवल राज्य के सबसे प्राचीन धार्मिक स्थलों में से एक है, बल्कि लाखों भक्तों की अटूट आस्था, चमत्कारिक शक्ति और अनूठी परंपराओं का केंद्र भी है। यह मंदिर लगभग 863 वर्षों से अधिक पुराना है और यहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर पहुंचते हैं।

इतिहास और स्थापना की दिव्य कहानी

मंदिर की उत्पत्ति:

  • 863 वर्ष पूर्व एकलेरा की पहाड़ी पर चट्टानों को चीरकर मां बिजासन स्वयं प्रकट हुई थीं।
  • मान्यता है कि माली समाज के लोग प्राकृतिक आपदाओं के कारण अपना गांव छोड़ने जा रहे थे।
  • रास्ते में एक तपस्वी मुनि मिले, जिन्होंने बताया कि यहाँ मां बिजासन अदृश्य रूप से निवास करती हैं और शीघ्र प्रकट होंगी।
  • एक दिन माली समाज के मुखिया को स्वप्न में माता के दर्शन हुए और माता ने कहा कि वे पहाड़ी की शिला से प्रकट होना चाहती हैं।
  • माता के प्रकट होने पर शिला के चार टुकड़े हो गए, जो सभी देवी के स्वरूप थे।

अखंड ज्योति का महत्व:

  • माता के प्रकट होने के बाद से यहाँ अखंड ज्योति निरंतर जलती आ रही है — यह 860+ वर्षों से बुझी नहीं है।
  • यह ज्योति भक्तों के विश्वास और माता की दिव्य उपस्थिति का प्रमाण मानी जाती है।

माता के तीन दिव्य रूप - दिन का अद्भुत चमत्कार

एकलेरा माता मंदिर की सबसे विशिष्ट मान्यता:

  • प्रातःकाल: माता कुमारी बालिका का रूप धारण करती हैं।
  • दोपहर: युवती के रूप में दर्शन देती हैं।
  • संध्या/रात: वृद्धा माता का रूप ले लेती हैं।
भक्तों का कहना है कि यह परिवर्तन केवल कल्पना या भावना नहीं, बल्कि मूर्ति में प्रत्यक्ष रूप से देखा और महसूस किया जा सकता है। जो सच्चे भाव से माता के दर्शन करता है, उसे यह दिव्य चमत्कार अवश्य नजर आता है।

अनूठी परंपराएँ और मान्यताएँ

पाती के लग्न - विवाह की विशेष मान्यता:

  • यदि किसी युवक-युवती का विवाह बार-बार बाधाओं में फंसता है, तो वे माता के दरबार में आकर “पाती के लग्न” लिखवाते हैं।
  • माता की साक्षी में संपन्न विवाह हमेशा सुखी और स्थिर माना जाता है।
  • दूर-दूर से वर-वधू यहाँ शादी के लिए आते हैं और माता का आशीर्वाद लेते हैं।
मनोकामना पूर्ति:
  • यहाँ मांगी गई कोई भी मनोकामना अधूरी नहीं रहती।
  • विशेषकर संतान प्राप्ति, स्वास्थ्य, ऐश्वर्य जैसी समस्याओं में माता का विशेष वरदान मिलता है।
  • निसंतान दंपत्तियों को संतान का वरदान मिलता है।

नवरात्रि महोत्सव और धार्मिक आयोजन

चैत्र नवरात्रि (मुख्य उत्सव):

  • स्थानीय मान्यता के अनुसार चैत्र नवरात्रि में दर्शन सबसे महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
  • नौ दिनों तक शतचंडी महायज्ञ का आयोजन होता है।
  • आसपास के 25 गांवों की समिति चंदा एकत्रित करके मेले का आयोजन करती है।
  • यह परंपरा पिछले 46 वर्षों से निरंतर चली आ रही है।

शारदीय नवरात्रि:

  • इस समय भी हजारों भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं।
  • विशेष पूजा-अर्चना और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

माघ माह विशेष:

  • माघ महीने में प्रतिदिन हजारों की संख्या में भक्त माता के दर्शन करने आते हैं।
  • यह समय विशेष पूजन कार्यक्रमों के लिए प्रसिद्ध है।

दूध तलाई और अन्य विशेषताएं

दूध तलाई:

  • मंदिर के पास दूध तलाई नामक पवित्र जलाशय स्थित है।
  • यहाँ स्नान करने का विशेष धार्मिक महत्व माना जाता है।
  • भक्त इसमें स्नान करके फिर माता के दर्शन करते हैं।

उल्टा स्वास्तिक परंपरा:

  • मंदिर के पीछे मन्नत मांगने वाले उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं।
  • मन्नत पूरी होने पर उस स्वास्तिक को सीधा कर देते हैं।
  • यह अनूठी परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है।

पुजारी परिवार और सेवा

परमार परिवार की सेवा:

  • पुजारी परमार परिवार पीढ़ियों से माता की सेवा कर रहा है।
  • गोरीशंकर परमार, सत्यनारायण परमार, कैलाश परमार, पुरुषोत्तम परमार और रामेश्वर परमार द्वारा पूजा-सेवा की जाती है।
  • वर्तमान में गुजराती रामी माली समाज के पुजारी भी सेवा करते हैं।

दैनिक दिनचर्या और दर्शन समय

दर्शन व्यवस्था:

  • सुबह से रात तक भक्तों के लिए मंदिर खुला रहता है।
  • तीनों समय (सुबह, दोपहर, शाम) में विशेष आरती होती है।
  • हर समय भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है।

कैसे पहुँचें एकलेरा माता मंदिर

स्थान विवरण:

  • पूरा पता: ग्राम एकलेरा, जिला शाजापुर, मध्यप्रदेश
  • देवास जिला मुख्यालय से: लगभग 120 किलोमीटर की दूरी
  • निकटवर्ती शहर: पीपलरावा से 8 किलोमीटर

परिवहन सुविधा:

  • सड़क मार्ग: सीहोर, शाजापुर, उज्जैन, इंदौर, राजगढ़ से सुविधाजनक पहुंच।
  • निकटवर्ती जिलों से नियमित बस सेवा उपलब्ध।
  • मंदिर पहाड़ी पर है, जहाँ तक पैदल चढ़ना आवश्यक है।

भक्तों के लिए विशेष सुझाव

दर्शन का सबसे अच्छा समय:

दर्शन का सबसे अच्छा समय:

  • चैत्र नवरात्रि सबसे शुभ समय माना जाता है।
  • माघ महीना विशेष पूजा के लिए आदर्श है।
  • मंगलवार और शनिवार को विशेष भीड़ होती है।

ले जाने योग्य चढ़ावा:

  • नारियल, मिठाई, फूल-माला
  • लाल चुनरी, सिंदूर
  • दीपक और घी
  • श्रद्धानुसार वस्त्र और आभूषण

सांख्यिकी तथ्य

वार्षिक आंकड़े:

  • लगभग 10-12 लाख भक्त सालाना दर्शन करते हैं।
  • चैत्र नवरात्रि में दैनिक 4-5 लाख तक भक्त आते हैं।
  • 25 गांवों की समिति द्वारा मेले का आयोजन किया जाता है।
  • 46 साल से निरंतर यज्ञ परंपरा चल रही है।

माँ एकलेरा का प्रेरणादायी संदेश

मुख्य संदेश:

माता एकलेरा के इस पावन धाम का मुख्य संदेश यह है कि सच्ची भक्ति केवल पूजा-अर्चना में नहीं, बल्कि हर जीव के प्रति करुणा, प्रेम और सम्मान में है। जो भी सच्चे मन से माता को पुकारता है, माँ उसकी हर मनोकामना पूर्ण करती हैं।

जीवन मूल्य:

  • अहिंसा और जीव दया का पाठ।
  • एकता और सामाजिक सद्भावना की भावना।
  • श्रद्धा और विश्वास की शक्ति।
  • पारिवारिक सुख और स्थिरता का आशीर्वाद।

निष्कर्ष

एकलेरा माता मंदिर का महत्व:

एकलेरा माता मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि जीवंत आस्था, चमत्कारिक शक्ति और सामाजिक मूल्यों का संगम है। यहाँ आने वाले भक्तों को न केवल माँ के दिव्य दर्शन का सौभाग्य मिलता है, बल्कि जीवन की हर समस्या का समाधान, मानसिक शांति और आध्यात्मिक शक्ति का वरदान भी प्राप्त होता है।

आज भी जब भक्त उस पवित्र चट्टान को देखते हैं जहाँ से माता प्रकट हुई थीं, तो उनके मन में अद्भुत श्रद्धा और विस्मय का भाव उत्पन्न होता है। 863 वर्षों से निरंतर जलती अखंड ज्योति आज भी माता की दिव्य उपस्थिति का साक्षी है।

🌺 जय एकलेरा माताजी! 🌺