द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक Mallikarjuna Jyotirlinga Temple भगवान शिव और देवी पार्वती के दिव्य मिलन का अद्भुत प्रतीक है। यह पवित्र धाम आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम पर्वत पर कृष्णा नदी के तट पर स्थित है, जहाँ प्राचीन समय से साधु-संत, ऋषि-मुनि और भक्त साधना करने आते रहे हैं। घने वन, शांत पर्वत, रहस्यमयी गुफाएँ और चारों ओर फैली प्राकृतिक ऊर्जा इस स्थान को आध्यात्मिक अनुभवों के लिए अत्यंत उपयुक्त बनाते हैं। कहा जाता है कि यहाँ दर्शन करने से शिव-पार्वती दोनों की संयुक्त कृपा प्राप्त होती है, इसलिए इसे “कालांतर से जीवित शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग” माना जाता है।
यह मंदिर उन दुर्लभ धामों में से एक है जहाँ शिव और शक्ति साथ-साथ विराजते हैं—शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में और देवी शक्तिपीठ के रूप में। यही कारण है कि Mallikarjuna मंदिर धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शक्तिशाली, सिद्धिप्रद और मोक्षप्रद माना जाता है। यह ब्लॉग आपको मंदिर के इतिहास, महत्व, वास्तुकला, समय-सारिणी, कैसे पहुँचे, आसपास के स्थल, यात्रा सुझाव और FAQs की पूरी जानकारी देता है।
Mallikarjuna Jyotirlinga का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है और यह स्वयं पुराणों, शास्त्रों और स्थानीय लोककथाओं में वर्णित है। शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती यहाँ अपने पुत्रों—कार्तिकेय और गणेश—को मनाने आए थे। कथा के अनुसार, दोनों पुत्रों में यह प्रश्न उठा कि कौन पहले विवाह करेगा। जब गणेश जी ने अपनी बुद्धिमानी से पृथ्वी की परिक्रमा कर विजय प्राप्त की, तो कार्तिकेय रुष्ट होकर कुमारा पर्वत चले गए। पुत्र को मनाने के लिए शिव-पार्वती स्वयं यहाँ आए, और यहीं स्थिर होकर उन्होंने अपने दिव्य रूप प्रकट किए—इसी रूप को Mallikarjuna Jyotirlinga कहा जाता है।
इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर 6वीं से 8वीं शताब्दी में सातवाहन और चालुक्य शासकों द्वारा विकसित किया गया, जबकि काकतिय और विजयनगर साम्राज्य ने इसे विस्तार देकर भव्य स्वरूप दिया। मंदिर में आज भी काकतिय काल की धातुकला, विजयनगर शैली की नक्काशी और द्रविड वास्तुकला का उत्कृष्ट मिश्रण दिखाई देता है। मंदिर की दीवारों पर शिवमहिमा, देवताओं, लोक उत्सवों और योग-साधना की दुर्लभ कलाकृतियाँ खुदी हुई हैं। यही कारण है कि इसे दक्षिण का काशी और India’s Most Divine Sacred Mountain Shrine कहा जाता है।
Mallikarjuna Jyotirlinga का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत गहरा है क्योंकि यह वह स्थान है जहाँ भगवान शिव और माता पार्वती अपने पुत्र कार्तिकेय को मनाने स्वयं पृथ्वी पर आए थे। यह कथा भक्तों के लिए अत्यंत भावुक और प्रेरणादायक मानी जाती है, क्योंकि यह दर्शाती है कि भगवान अपने भक्तों या पुत्रों की भावनाओं को समझने के लिए स्वयं उनके समीप आते हैं। यहाँ दर्शन करने से शिव और शक्ति दोनों की संयुक्त कृपा प्राप्त होती है, जो अत्यंत दुर्लभ और सिद्धिप्रद मानी जाती है। शिवपुराण में कहा गया है कि जो भक्त सच्ची भावना से यहाँ दर्शन करता है, उसके सभी दुख, पाप, भय और ग्रहदोष दूर हो जाते हैं और जीवन में स्थिरता तथा मानसिक शांति प्राप्त होती है। यह स्थान मंत्र, तप, योग, ध्यान और तांत्रिक साधना का भी एक अत्यंत शक्तिशाली केंद्र माना जाता है। यहाँ की धरती, वातावरण, गुफाएँ और पर्वत ऐसी दिव्य ऊर्जा से भरे माने जाते हैं कि एक साधारण व्यक्ति भी यहाँ पहुँचकर मानसिक हल्कापन, आध्यात्मिक शांति और दिव्यता का अनुभव अवश्य करता है।
Mallikarjuna Jyotirlinga Temple द्रविड, काकतिय और विजयनगर शैली की अद्भुत मिश्रित वास्तुकला का एक जीवंत उदाहरण है। मंदिर का विशाल गोपुरम सैकड़ों वर्ष पुरानी पत्थर की नक्काशी से सजा हुआ है जिसमें देवताओं, अप्सराओं, लोककथाओं, शिव-तांडव, नृत्य मुद्राओं और पौराणिक कथाओं को विस्तार से दर्शाया गया है। गर्भगृह पत्थरों की गहरी और ठोस संरचना से निर्मित है, जहाँ स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित है। इसके आसपास की शिल्पकारी इतनी सूक्ष्म है कि हर आकृति स्वयं अपनी कहानी कहती है। विशाल मंडप, लंबे गलियारे, स्तंभों पर उकेरे गए पौराणिक चित्र, और परिक्रमा पथ मंदिर को अत्यंत विशाल एवं भव्य रूप देते हैं। देवी ब्रह्मारंभा शक्तिपीठ का स्थान भी इसी परिसर में स्थित है, जिससे यह धाम शिव और शक्ति दोनों का दिव्य संगम बन जाता है। मंदिर परिसर में मौजूद कई छोटे मंदिर, शिलालेख, पत्थर की मूर्तियाँ और प्राचीन गाथाएँ यह दिखाती हैं कि इस स्थल का निर्माण कई राजवंशों द्वारा क्रमिक रूप से करवाया गया था। संपूर्ण परिसर में दैवीय ऊर्जा स्थिर महसूस होती है जो भक्तों को अपने भीतर गहराई से जोड़ देती है।
मंदिर हर दिन सुबह से देर शाम तक दर्शन के लिए खुला रहता है। भीड़ के अनुसार कुछ समय पर विशेष पूजाएँ और आरती आयोजित की जाती हैं।
| Category | Information |
|---|---|
| Darshan Timings | सुबह: 5:30 AM – 1:00 PM, शाम: 3:00 PM – 7:00 PM |
| Aarti | सुबह की आरती: 5:30–6:00 AM, शाम की आरती: 6:00–6:30 PM |
| Special Puja | Rudrabhishek, Kalyanotsavam, Ganapati Homam |
| Photography | गर्भगृह के अंदर अनुमति नहीं |
| Dress Code | पारंपरिक/सभ्य वस्त्र |
मंदिर की लोकेशन पहाड़ी क्षेत्र में है, लेकिन सड़क, बस और ट्रेन के माध्यम से यहाँ पहुँचना सरल है।
| Mode | Details |
|---|---|
| Nearest Railway Station | मार्कापुर रोड स्टेशन – 85 km |
| Nearest Airport | विजयवाड़ा एयरपोर्ट – 180 km |
| Nearest Major City | कर्नूल (180 km), हैदराबाद (230 km) |
| By Road | बसें हैदराबाद, कर्नूल, विजयवाड़ा से उपलब्ध |
Mallikarjuna के आसपास कई पौराणिक, प्राकृतिक और आध्यात्मिक स्थल हैं जो यात्रा को और भी यादगार बनाते हैं।
| Place | Distance | Details |
|---|---|---|
| Bhramaramba Devi Temple | 0.2 km | शक्तिपीठ—देवी का मुख-स्थान |
| Srisailam Dam | 15 km | भारत के प्रमुख जलाशयों में से एक |
| Akkamahadevi Caves | 10 km | प्राचीन तपस्थली |
| Pathala Ganga | 2 km | कृष्णा नदी घाट |
| Hatakeswara Temple | 5 km | शिव का दुर्लभ रूप |
Mallikarjuna Temple में दर्शन सुबह बहुत जल्दी प्रारंभ हो जाता है और रात तक चलता है। सुबह की आरती और अभिषेक का समय यहाँ सबसे शांत और आध्यात्मिक माना जाता है। विशेष त्योहारों—सावन, महाशिवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा—के दौरान मंदिर में हजारों भक्त आते हैं, जिससे भीड़ बढ़ जाती है। गर्भगृह में दर्शन के लिए सामान्य और विशेष दर्शन दोनों व्यवस्था उपलब्ध है। मोबाइल और कैमरा गर्भगृह में पूरी तरह वर्जित हैं। बुजुर्ग भक्तों के लिए बैटरी कार और व्हीलचेयर सुविधाएँ उपलब्ध हैं। मंदिर परिसर स्वच्छ, व्यवस्थित और सुरक्षित है जहाँ प्रसाद, जलपान और विश्राम की सुविधा भी मिल जाती है।
यह यात्रा पहाड़ी और वन्य क्षेत्र से होकर गुजरती है, इसलिए मौसम और स्वास्थ्य का ध्यान रखना आवश्यक है। गर्मियों में हल्के कपड़े और पर्याप्त पानी साथ रखना चाहिए। बारिश में रास्ते फिसलन भरे हो सकते हैं। मंदिर परिसर बड़ा है, इसलिए आरामदायक जूते पहनना बेहतर होता है। त्योहारों के समय दर्शन में अधिक समय लग सकता है, इसलिए यात्रा की योजना पहले से बनाना लाभकारी है। गर्भगृह में फोटोग्राफी प्रतिबंधित होने के कारण मोबाइल और कैमरा कम से कम प्रयोग करें। भोजन व रुकने की अच्छी व्यवस्था श्रीशैलम टाउन में उपलब्ध है।